गौरव पांडेय, कुमाऊं पोस्ट न्यूज, चम्पावत :
…. भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हों और आधुनिकता की कितनी ही बड़ी बातें कर लें। लेकिन जब सरकारी तंत्र की काहिली के कारण जिला मुख्यालय से महज 12 किमी की दूरी पर स्थित एक गांव में दस साल पहले बननी शुरू हुई रोड आज तक भी पूरी नहीं हो पाई है तो विकास की परिभाषा आप भली-भांति समझ सकते हैं। ग्रामीणों ने रोड के लिए लोकसभा चुनाव तक का बहिष्कार कर डाला, लेकिन शासन और जनप्रतिनिधियों के कानों में जूं तक नहीं रेंग सकी। कई बार धरना-प्रदर्शन के बाद भी स्थिति जस की तस है। अब ऐसे में सवाल यह है कि दूरस्थ गांवों के अंतिम छोर तक के व्यक्ति को विकास की मुख्यधारा से जोडऩे की बात करने वाली सरकार, नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि जब मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित गांव को रोड से नहीं जोड़ पा रहे हैं, ऐसे में सीमांत गांवों की उम्मीद तो छोड़ दी दो।
यहां हम बात कर रहे हैं भंडारबोरा ग्रामसभा के रौंकुंवर तोक की। गांव की सीमा चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित है। मुद्दे पर आएं तो यहां के ग्रामीणों ने आजादी के बाद गांव को सडक़ से जोडऩे के लिए कई बार आवाज उठाई। नेताओं के आश्वासन और विभागों में फाइल चलन की प्रक्रिया लंबे अरसे तक चली। वर्ष-2007 में तत्कालीन विधायक भाजपा की बीना महराना थी। ग्रामीणों ने उनके समक्ष गांव को सडक़ से जोडऩे की मांग की। लोक निर्माण विभाग द्वारा सर्वे कर डीपीआर तैयार की गई। सर्वे के अनुसार 12 किमी की रोड का मैप भी तैयार कर लिया गया। सडक़ निर्माण हेतु प्रशासन के माध्यम से राज्य को प्रस्ताव भेज सडक़ को राज्य सेक्टर के मद में शामिल करने को कहा। फलस्वरूप सडक़ के लिए राज्य सेक्टर मद से बजट तक जारी हो गया और तत्कालीन भाजपा विधायक वीना महराना ने रोड का शिलान्यास भी किया। बसौटी से शुरूआत की 4 किमी नाप भूमि पर सडक़ का कटान भी हुआ। उसके बाद वन विभाग द्वारा वन अधिनियम का अड़ंगा लगा दिया गया। तब से इस सडक़ में वन अधिनियम का अड़ंगा ही लगा हुआ है। अड़चनों को दूर किए जाने की मांग को लेकर ग्रामीणों ने कई बार ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन तक किया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों के प्रदर्शन के बाद प्रशासन, वन विभाग जरूर हर बार वन अधिनियम की अनापत्ति का प्रस्ताव या आपत्ति हटाने का प्रस्ताव शासन को भेजते हैं, लेकिन शासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वह फाइल वहां जस की तस है।
खड़ी चढ़ाई पार कर 8 किमी चलने के बाद पहुंचते हैं रोड तक
रौकुंवर में रोड न होने का नतीजा यह है कि ग्रामीणों को 8 किमी की खड़ी चढ़ाई पार करके रोड तक पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों को घर का सामान, राशन और अन्य वस्तुओं को कंधे पर लादकर ले जाना पड़ता है। अब इसे मजबूरी कहें या आदत, कोई फर्क नहीं पड़ता। ग्रामीणों को ऐसे में कई दिक्कतों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, देर-सबेर जाने पर उन्हें जंगली जानवरों का भय भी सताता रहता है।
सडक़ की मांग के लिए किया था लोकसभा चुनाव का बहिष्कार
600 की आबादी वाले रौकुंवर गांव के ग्रामीण सडक़ सुविधा से वंचित होने के कारण बेहद क्षुब्ध हो चुके थे। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में एकता का परिचय देते हुए रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा देते हुए लोकसभा चुनाव का बहिष्कार तक किया था। शासन-प्रशासन की ओर से ग्रामीणों से बातचीत की गई और कहा कि उनकी समस्या का निराकरण जल्द किया जाएगा। लेकिन ग्रामीण टस से मस नहीं हुए और उन्होंने लोकसभा चुनाव का पूर्ण बहिष्कार किया। ना तो क्षेत्रीय सांसद, ना ही भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा उसके बाद कोई सुध ली गई कि आखिर गांव वालों ने बहिष्कार क्यों किया था तथा उनकी समस्या क्या है। चुनाव खत्म तो मामला भी दरकिनार।
अपने जिले की हर खबर से रहेंं अपडेट यहांं क्लिक कर कुमाऊं पोस्ट के Whatsapp Group से सीधे जुड़ें
जनप्रतिनिधियों, नुमाइंदों और शासन की भारी उदासीनता का शिकार है रोड निर्माण
ऐसा नहीं है कि रोड के लिए ग्रामीणों ने कभी किसी जनप्रतिनिधि से कहा तक न हो। दर्जनों बार ज्ञापन दे दिए और कई बार उन्होंने क्षेत्रीय विधायकों को गांवों में बुलाकर तक रोड बनाने के लिए कहा। लेकिन आज तक रोड निर्माण में 4 किमी कटान के बाद कोई भी कार्रवाई नहीं हो सकी है। 2012 में तत्कालीन विधायक हेमेश खर्कवाल के सामने भी ग्रामीणों ने समस्या को उठाया, उन्होंने आश्वासन जरूर दिया, लेकिन न तो वन आपत्ति हट सकी और न कोई कार्रवाई हुई। 2017 में बदले सियासी घटनाक्रम के बीच भाजपा के कैलाश गहतोड़ी विधायक बने। वह बसौटी से रौकुंवर गांव तक 8 किमी पैदल गए और गांव में जनसभा कर ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि वह गांव को सडक़ से जोडऩे के लिए अपनी ओर से पूरा प्रयास करेंगे। लेकिन अब तक सडक़ निर्माण की स्थिति जस की तस है। प्रधान महेश सिंह कुंवर, गोविंद सिंह सामंत, बॉबी, चंचल कुंवर आदि का कहना है कि उन्हें पिछले दस सालों में जनप्रतिनिधियों ने कोरे आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं दिया है। धरातल पर इसका असर कुछ नहीं दिखता है काम शून्य है।
मरीजों को लाते हैं डोली में, गर्भवती महिलाओं को बहुत ज्यादा परेशानी
यदि गांव में कोई मरीज बीमार हो जाए तो ग्रामीण उन्हें डोली में सडक़ तक लाते हैं और वहां से वाहन के जरिए अस्पताल ले जाते हैं। गांव के युवा सामाजिक कार्यकर्ता चंचल कुंवर ने बताया कि 8 किमी की खड़ी चढ़ाई और उतराई पार कर मरीजों को डोली में लाने में ग्रामीणों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यदि किसी ग्रामीण की तबियत शाम या रात में ज्यादा खराब हो जाती है तो रात में भी कई बार अंधेरे में मरीजों को मजबूरन इलाज के लिए डोली में लाना पड़ता है। चंचल कुंवर ने बताया कि ऐसी स्थिति में गर्भवती महिलाओं को बहुत दिक्कतें आती हैं। उनका कहना था कि कई बार तो ऐसी नौबत भी आ जाती है कि कभी-कभी किसी गर्भवती महिला का रक्तस्राव भी हो जाता है, जिस कारण ऐसे में उस महिला की जान पर आ बनती है।
कुछ दिन पूर्व ही गांव की 42 वर्षीय महिला गंगा देवी पत्नी बोध सिंह की तबियत खराब हो गई और ग्रामीण लक्ष्मण सिंह, पान सिंह, तेज सिंह, मनोज सिंह 8 किमी खड़ी चढ़ाई पार कर महिला को सडक़ तक डोली में लाए।
सडक़ न होना पलायन का सबसे बड़ा कारण
गांव के सडक़ सुविधा से वंचित होने के कारण पलायन के लिए लोग मजबूर हुए हैं। बेहतर शिक्षा व जीवनयापन के लिए गांव के अधिकांश ग्रामीणों ने अब चम्पावत और अन्य नगरों का रूख कर लिया है। ग्रामीणों का कहना है कि वह गांव से नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन सडक़ का अभाव मजबूरन उन्हें गांव से पलायन को मजबूर करता है।
नोडल आफिस देहरादून में लंबित है फाइल : ईई
लोनिवि चम्पावत खंड के अधिशासी अभियंता एमसी पांडेय और भंडारबोरा क्षेत्र की अभियंता तनुजा देव से सडक़ को लेकर जानकारी ली गई तो उनका कहना था कि उनकी ओर से कोई भी कार्य का प्रस्ताव लंबित नहीं है। उन्होंने अपने स्तर से सभी प्रक्रियाओं और कार्रवाईयों को पूरा कर शासन को भेज दिया है। देहरादून स्थित नोडल आफिस में यह फाइल लंबित है और वन भूमि में लगी आपत्ति का निस्तारण लोनिवि के नोडल आफिस देहरादून के माध्यम से ही किया जाएगा।