पहाड़ी फल काफल अपने कई औषधीय गुणों से भरपूर है लेकिन काफल से एक बहुत ही मार्मिक कहानी जुडी है | कहा जाता कि एक पहाड़ी गाँव में (शायद उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश में) एक गांव में एक गरीब महिला अपनी एक छोटी सी बेटी के साथ रहती थी. आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा ज्यादा कुछ था नहीं था, लेकिन क्योंकि पहाड़ी लोग संतोषी स्वाभाव के होते हैं उनकी अच्छी कट रही थी.
गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला को अतिरिक्त आमदनी का जरिया मिल जाता था. वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, और अपने लिए और अपनी बेटी के लिए सामान ले आती.
एक बार महिला जंगल से सुबह-2 एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई. उसने शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, ‘मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं. तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना. मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना.’ इतना कह कर व पशुओं को चराने ले गयी.
मां की बात मानकर उसकी बेटी उन काफलों की पहरेदारी करती रही. कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही. इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि सुबह तो काफल की टोकरी लबालब भरी थी पर अभी कुछ कुछ काफल कम थे. मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी गहरी नींद में सो रही है.
माँ को लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं. उसने गुस्से में घास का गट्ठर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुट्ठी से प्रहार किया. नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई.
बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी. मां अपनी प्यारी बेटी की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही. उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई. जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा गये थे इसलिए कम दिखे जबकि शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए और टोकरी फिर से भर गयी. मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और उसने ढांक से गिर कर ख़ुदकुशी कर ली.
कहते हैं कि आज भी वो मां-बेटी पंछियों के रूप में गर्मियों में एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदकती हैं और अपना पक्ष रखती हैं। बेटी कहती है- काफल पके, मैं नी चखे यानि मैंने काफल नहीं चखे हैं। फिर प्रत्युतर में माँ, एक दूसरी चिड़िया गाते हुए उड़ती है ‘पूरे हैं बेटी, पूरे हैं‘..
पहाड़ी लोग इस किस्से को एक सबक की तरह अपनी संतानों को सुनते हैं, कि हमें सब्र से काम लेना चाहिए और किसी भी बात की तह तक पहुंचे बिना कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लेना चाहिए जैसा कि उस अभागी माँ ने किया.
इसके अलावा, लोक संस्कृतियों में काफल का बड़ा महत्व है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई गाने ऐसे हैं जिनमें काफल का जिक्र है।